उत्तराखंड के बीस साल के इतिहास में मौजूद सरकार यानी त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार को हमेशा याद रखा जाएगा । सत्ता में न होते हुए भी सत्ता को अपनी उंगलियों पर नाचने वाले ब्रोकर और माफियों की दाल न गलने से सत्ता के गलियारों में वर्षों से दलाली करने वाले अब बुरी तरह हताश हो गये हैं।
यही वजह है कि फ्रॉड और माफ़िया अब सरकार के हर अच्छे काम में भी नुक्स निकाल कर सरकार को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
2017 में त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने जब कामकाज शुरू किया तो माफिया और गलत मंसूबे रखने वाले ने भी सरकार में एंट्री मारने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। माफिया यहां के खनन, शराब, टेंडर और ट्रांसफर पोस्टिंग जैसे कामों को पहले ही उद्योग का रूप दे चुका था, इसलिए यह माना जा रहा था कि इस सरकार में भी यह सब पहले की तरह बदस्तूर चलता रहेगा। अब पता चल रहा है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने शपथ लेते ही फ्रॉड के और माफ़िया की कमर तोड़ने का पूरा मन बना लिया था। इसलिए उन्होंने सरकार बनाते ही कुछ ऐसे फैसले लिये जो जिसने ब्रोकर व माफिया के कैंप में खलबली मचा दी।
राज्य गठन के बाद इस राज्य में खनन, शराब, ट्रांसफर-पोस्टिंग, टेंडर व सरकारी जमीनों को खुर्द-बुर्द करने वाले माफियाओं का धंधा खूब फला फूला। राजनीतिक दलों से जुड़े कार्यकर्ताओं के साथ-साथ इस धंधे में वो लोग भी आये जो
दलाल और माफ़िया पहले से ही सत्ता की मलाई का मजा ले रहे थे। सचिवालय व मंत्रालयों में ऐसे दलाल मोटी-मोटी फाइलें लेकर दिन भर माल समेटा करते थे।
त्रिवेंद्र रावत ने कुर्सी संभालते ही सबसे पहले ट्रांसफर एक्ट बना दिया। इस एक्ट के बनने से ट्रांसफर-पोस्टिंग में होने वाला अरबों का रुपये का न्यारा-वारा रुक गया। एक्ट में जरूरतमंद कार्मिकों के लिए धारा-27 का प्रावधान रखा, ताकि बीमार व अन्य कोई पारिवारिक मजबूरी वाले कार्मिकों को राहत देने का रास्ता बना रहे, लेकिन पैसा लेकर मनमाफिक जगहों पर ट्रांसफर करा देने वाले ब्रोकर्स के लिए सारे रास्ते इस एक्ट ने बंद कर दिये। यहीं से सत्ता के गलियारों में घूमने वाले दलालों को करारा झटका लगा। ट्रांसफर एक्ट आने के बाद इन ट्रांसफर ब्रोकर्स की कमर टूट गयी। उसके बाद त्रिवेंद्र सरकार ने टेंडर की प्रक्रिया को भी मैनुअल से हटा कर ई-टेंडरिंग कर दी। जिन ब्रोकर्स ने टेंडर दिलवाने के काम के ठेके ले रखे थे उनके लिए भी मुहं दिखाना मुश्किल हो गया, सरकार के इस फैसले से ब्रोकर्स की इस सेक्टर में भी एंट्री बंद हो गयी।
दलाली का एक और बड़ा सेक्टर था खनन।
यहां खनन में हर साल अरबों-खरबों का कारोबार होता है। माफिया और ब्रोकर्स इस पूरे खनन के कारोबार पर एकाधिकार करके सरकारी खजाने को तो चूना लगा ही रहे थे आम आदमी को भी इस कमाई वाले क्षेत्र में नहीं घुसने दे रहे थे। सरकार ने पिछले तीन साल में खनन सेक्टर में बड़े परिवर्तन कर दिये हैं। अब खनन के पट्टे जिलाधिकारी के स्तर से आवंटित होते हैं। जिलाधिकारी को इसमें होने वाली हर तरह की गड़बड़ी वह चाहे राजस्व चोरी की हो, अनियम तरीके से खनन करने का हो, या फिर एग्रीमेंट से बाहर जाकर खनन का मसला हो, के लिए सीधे जिम्मेदार ठहराते हुए पट्टे निरस्त करने का अधिकार भी सरकार ने दे दिया है। इस व्यवस्था से खनन में एकाधिकार रखने वाले माफिया पर सरकार का जोरदार हंटर चला और उनकी भी कमर टूट गयी।
खनन, शराब, ट्रांसफर माफिया के बाद त्रिवेंद्र रावत का चाबुक भू-माफिया पर चला। रेरा के तहत भू-माफियाओं पर नकेल कसते हुए त्रिवेंद्र सरकार ने सरकारी जमीनों को खुर्द-बुर्द करने वाले ब्रोकर्स की मंशाओं पर पानी फेरते हुए जमीनों की अवैध खरीद-फरोख्त पर लगाम लगाया। इसके अलावा जनहित कार्यों के नाम पर कब्जाई गई हजारों एकड़ जमीन सरकार में निहित करवाई। देहरादून में अंगेलिया सोसाइटी की ११०० एकड़ जमीन सहित डोईवाला में सैकड़ों एकड़ जमीन और ऊधमसिंह नगर में पराग फार्म की जमीन सहित कई अन्य अरबों-खरबों की जमीनों को राज्य सरकार में निहित करवा दिया।
यही नहीं ये ब्रोकर्स और माफ़िया पावर प्रोजेक्ट आवंटन व सरकार के बड़े ठेकों को दिलाने में भी हस्तक्षेप करने की ख्वाहिश रखते थे लेकिन त्रिवेंद्र रावत ने इन सबके मंसूबों पर पानी फेर दिया। सूत्रों के मुताबिक दलालों और माफिया के तार को हेड से टेल तक ट्रेस भी कर लिया है। देवस्थानम बोर्ड व गैरसैंण ग्रीष्मकालीन राजधानी जैसे सरकार के बड़े व महत्वपूर्ण फैसलों को भी इन्होंने नकारात्मक खबर के रूप में प्रचारित किया। ऐसी खबरों में जानबूझकर विपक्ष के नेताओं के बयान डालकर उन्हें समाचार का रूप देने की नापाक कोशिश ये लोग समय-समय पर करते रहते हैं। दलालों के इस पूरे कुनबे की हिस्ट्री को अच्छे से खंगाला जा रहा है