उत्तराखंड कांग्रेस में इस वक्त सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है जो पार्टी के अंदर नूरा कुश्ती चल रही है वह अब पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया में बयानों वीडियो और फोटो के माध्यम से बाहर आ रही है कांग्रेस में खेमी बाजी और गुटबाजी के साथ वर्चस्व की लड़ाई इतनी बढ़ गई है कि लगता है कि कॉन्ग्रेस 2022 के चुनावों से पहले कहीं मौजूदा मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के लिए उत्तराखंड की सत्ता को दोबारा देने के लिए रेड कारपेट बिछा देगी।
क्योंकि एक तरफ मौजूदा मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत लगातार प्रदेश में तेजी से विकास कार्य को बढ़ा रहे हैं और लगातार जिलों के दौरे कर रहे हैं सबसे बड़ी बात यह है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत कई बड़े और राज्य के विकास के लिए ऐसे फैसले ले रहे हैं जिससे आने वाले समय में उत्तराखंड विकास के पथ पर तेजी से दौड़ेगा ।पर ठीक इसके उलट कांग्रेस अब तक चुनावी तैयारियों के बजाय अपनी अपनी चुनावी तैयारियों में जुटी हुई है कांग्रेसी तय नहीं कर पा रहे है कि 2022 में वे चुनाव कैसे एकजुट होकर लड़ेंगे सबसे बड़ी बात यह है कि 2022 में त्रिवेंद्र रावत सरकार का मुकाबला अलग-अलग गुटों में बांटी कॉन्ग्रेस होगा। और जाहिर सी बात है की फिलहाल कांग्रेस थे सोशल मीडिया में आ रहे बयानों बैठकों में हो रही अपने अपने नेताओं के लिए नारेबाजी लगातार अलग-अलग खेमों से एक दूसरे के खिलाफ हो रहे बयानों से साफ लगता है कि एक बार फिर से खुद कांग्रेस अपने हाथों त्रिवेंद्र सरकार के लिए उत्तराखंड की सत्ता देने के लिए रेड कारपेट बिछा रही है
दरअसल जब 2002 में उत्तराखंड में सत्ता पर कांग्रेस काबिज हुई थी तब से यह वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो गई थी ।उत्तराखंड में उस समय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मौजूदा राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के दम पर कांग्रेस ने सत्ता हासिल की थी लेकिन कांग्रेस के आलाकमान ने पार्टी के वरिष्ठ नेता एनडी तिवारी को उत्तराखंड की कुर्सी दे दी थी ऐसे में जाहिर तौर पर कांग्रेस में अंदर खाने वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो गई थी या नहीं इस वक्त मौजूदा हालात में जो कांग्रेस में चल रहा है उसकी शुरुआत कांग्रेस आलाकमान ने ही कर दी थी जिस तरीके से जब 2007 के विधानसभा चुनावों से पहले तत्कालीन पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने ठीक वर्तमान में जो हालत चल रहे हैं उसी तरह से भाजपा को सत्ता हासिल करने के लिए रेड कारपेट बिछा दिया था और 2007 में भाजपा ने उत्तराखंड की सत्ता हासिल कर ली थी राजनीतिक जानकार कहते हैं कि अगर एनडी तिवारी पूरी तरह से प्रचार पर जुटते तो शायद दोबारा से 2007 में कांग्रेस की सत्ता उत्तराखंड पर काबिज होती लेकिन अंदरूनी खाने चल रही युवा कुश्ती और गुटबाजी ने कांग्रेस को विपक्ष पर बैठने के लिए मजबूर कर दिया था
अब ऐसे में 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस फिर से उत्तराखंड की सत्ता हासिल करने में कामयाब रही लेकिन इस बार सत्ता की चाबी निर्दलीय विधायकों और बसपा के हाथ में थी ऐसे में एक बार फिर से कांग्रेस आलाकमान ने भविष्य में 2017 के होने वाले चुनावों के लिए फिर से भाजपा के लिए सत्ता हासिल करने के लिए रेड कारपेट फिर से बिछा दिया ऐसा इसलिए क्योंकि एक बार फिर से हरीश रावत को सत्ता की चाबी ना देखकर कांग्रेस आलाकमान ने पार्टी के वरिष्ठ नेता विजय बहुगुणा को सत्ता की चाबी दे दी अब ऐसे में फिर से उत्तराखंड में 2002 वाले हालात पैदा हो गए और मुख्यमंत्री के नाम के घोषित करने के बाद से ही कांग्रेस में वर्चस्व और गुटबाजी शुरू हो गई
इसके बाद 2014 में उत्तराखंड में कांग्रेस में ही परिवर्तन हुआ और विजय बहुगुणा से सत्ता हरीश रावत को कांग्रेस हाईकमान ने दे दी लेकिन कांग्रेस मैं वर्चस्व और गुटबाजी की लड़ाई चरम पर पहुंच गई थी ऐसे में सबसे पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सतपाल महाराज ने पार्टी का दामन छोड़ा और उसके बाद मार्च 2016 में बजट सत्र के दौरान पार्टी के 9 विधायकों ने अपनी ही सरकार के खिलाफ मनी बिल के विरोध में वोट दिया और पार्टी का दामन छोड़कर अलग हो गए लेकिन उस समय जैसे तैसे पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सत्ता को बचा लिया पर कांग्रेस पार्टी में जिस तरीके से तोड़फोड़ हुई उससे 2017 की कहानी लिखी जा चुकी थी।
हालांकि 2017 में भाजपा के सत्ता हासिल करने की कहानी के पीछे सबसे बड़ा हाथ उत्तराखंड कांग्रेस प्रदेश कमेटी का नहीं बल्कि कांग्रेस हाईकमान का रहा है क्योंकि कांग्रेस हाईकमान यह तय नहीं कर पाया कि सत्ता का असली हकदार कौन है और हर बार सत्ता की चाबी किसी और को थमा देने से कहीं ना कहीं भाजपा के लिए सत्ता की रहा और कांग्रेस खुद आसान करती चली गई।
2017 में कांग्रेस के पास मात्र 11 सीटें विधानसभा में रह गई थी और भाजपा ने 57 सीटों का बड़ा मैंडेट हासिल किया था यही नहीं 2014 के लोकसभा चुनावों में पांचों लोकसभा सीटें और केंद्र की सत्ता गंवाने के बाद भी कांग्रेस एकजुट नहीं हो पाई जैसे ही 2019 के चुनाव आये कांग्रेस एक बार फिर से ना सिर्फ केंद्र की सत्ता से और दूर हुई बल्कि उत्तराखंड में फिर से पांचों लोकसभा सीट प्रचंड बहुमत के साथ भाजपा के झोली में आ गई ।
अब इस पूरे कांग्रेस के इतिहास और चल रही कांग्रेस में वर्चस्व की लड़ाई इस बात को पुख्ता और शीशे की तरह साफ करती है कि 2022 के चुनाव कहीं कांग्रेस खुद अपने हाथों से ना गवा दें क्योंकि कांग्रेस के सामने पीएम मोदी, सीएम त्रिवेंद्र रावत और भाजपा का अनुशासित और विशाल संगठन चुनौती तो है लेकिन सबसे बड़ी चुनौती इस वक्त कांग्रेस में खुद के नेताओं से ज्यादा है।