सीएम का चेहरा घोषित करने में … सामूहिकता की अचानक याद क्यों?- हरीश रावत

कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व सीएम हरीश रावत ने सोशल मीडिया में लिखी एक और नई पोस्ट ….पोस्ट के जरिए प्रदेश संगठन की कार्यप्रणाली पर उठाए गंभीर सवाल ….हरीश रावत ने पोस्ट में लिखा कि आखिर क्या दिक्कत है चेहरा घोषित नहीं किया जा रहा है …अचानक सामूहिक नेतृत्व की याद कहां से आ गई ….प्रदेश संगठन की मनमानी को लेकर सवाल उठाए है …हरीश रावत ने कहा कुछ लोगों की संस्तुति करने के लिए भी मुझे कांग्रेस आलाकमान का दरवाजा खटखटाना पड़ता है …आखिर तब क्यों नहीं सामूहिक ता का पालन होता है …ऐसे मामलों में मैंने कभी आवाज नहीं उठाई ….पार्टी के आधिकारिक पोस्टर से मेरा नाम और चेहरा गायब होता है मैंने तब भी कोई सवाल खड़ा नहीं किया …कभी-कभी मंचों पर स्थान मिलने को लेकर मुझे संदेह होता है। मैं अपने साथ बैठने के लिए अपना मोड़ा साथ लेकर चलता हूँ ..

हरीश रावत का बयान
मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित होने को लेकर संकोच कैसा? यदि मेरे सम्मान में यह संकोच है तो मैंने स्वयं अपनी तरफ से यह विनती कर ली है कि जिसे भी मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया जायेगा मैं, उसके पीछे खड़ा हूंगा। रणनीति के दृष्टिकोण से भी आवश्यक है कि हम भाजपा द्वारा राज्यों में जीत के लिये अपनाये जा रहे फार्मूले का कोई स्थानीय तोड़ निकालें। स्थानीय तोड़ यही हो सकता है कि भाजपा का चेहरा बनाम कांग्रेस का चेहरा, चुनाव में लोगों के सामने रखा जाय ताकि लोग स्थानीय सवालों के तुलनात्मक आधार पर निर्णय करें। मेरा मानना है कि ऐसा करने से चुनाव में हम अच्छा कर पाएंगे, फिर सामूहिकता की अचानक याद क्यों? जो व्यक्ति किसी भी निर्णय में, इतना बड़ा संगठनात्मक ढांचा है पार्टी का, उस ढांचे में कुछ लोगों की संस्तुति करने के लिए भी मुझे AICC का दरवाजा खटखटाना पड़ता है, उस समय सामूहिकता का पालन नहीं हुआ है और मैंने उस पर कभी आवाज नहीं उठाई है, पार्टी के अधिकारिक पोस्टरों में मेरा नाम और चेहरा स्थान नहीं पा पाया, मैंने उस पर भी कभी कोई सवाल खड़ा नहीं किया! यहां तक की मुझे कभी-कभी मंचों पर स्थान मिलने को लेकर संदेह रहता है तो मैं, अपने साथ अपना मोड़ा लेकर के चलता हूं ताकि पार्टी के सामने कोई असमंजस न आये तो आज भी मैंने केवल असमंजस को हटाया है, तो ये दनादन क्यों?


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